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भारत में मानव मलमूत्र हटाने के कार्य (मैनुअल स्केवेंजिंग) को समाप्त करने के लिए हिंदू धार्मिक नेताओं को बोलना पड़ेगा

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दलित समुदायों द्वारा कच्चे सीवेज को एकत्रित करने की प्रथा के विरूद्ध भारत में हिंदू धार्मिक नेता प्रबलता से अभियान चलाने के लिए अनिच्छुक रहे हैं, और यही कारण इस प्रथा के उन्मूलन करने के प्रयासों की प्रगति को धीमी कर रहा है। openGlobalRights की बहस, धर्म और मानव अधिकार के लिए एक योगदान। English

Seema Guha
27 November 2014

आज़ादी के उनहत्तर वर्षों के बाद भारत में "मैनुअल स्केवेंजिंग" (मानव मलमूत्र हटाने के कार्य) पर एक हाल ही में प्रस्तुत ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में देश के अधिकतर भागों में प्रचलित एक घृणित प्रथा पर प्रकाश डाला गया है।

छियानवे पृष्ठों की इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य और केन्द्रीय कानूनों के बावजूद स्थानीय अधिकारी अभी भी अक्सर दलितों या "अछूतों" को उँची जातियों के मानव मलमूत्र को प्राचीन उपकरणों के माध्यम से साफ़ करवाते हैं, जिससे अक्सर उनके हाथ और पैर कच्चे मलमूत्र के संपर्क में आते हैं। इन "शुष्क शौचालयों" के अधिकांश सफ़ाई कर्मचारी महिलाएं होती हैं, क्योंकि दलित पुरुषों को खुले में शौच के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सेप्टिक टैंकों और क्षेत्रों की सफ़ाई करनी पड़ती है। उनके काम की भयानक परिस्थितियों के अलावा, इन निम्न-जाति के सफ़ाई कर्मचारियों को अक्सर हिंसा, उत्पीड़न और मज़दूरी रोक देने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

मानव मलमूत्र हटाने के कार्य (मैनुअल स्केवेंजिंग) को अपराध घोषित करते हुए नवीनतम कानून को सभी राजनीतिक दलों के समर्थन के साथ 2013 में भारत की संसद ने पारित किया था। और फिर भी, स्केवेंजिंग कायम है। पहले की सरकारें पिछले कानूनों को लागू करने में विफल रही हैं, और उन्होंने घरों, व्यवसायों और संस्थाओं में चलते पानी के शौचालयों की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं बनाया है।

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Flickr/Bobulix (Some rights reserved)

A Dalit man cleans a sewer in Amritsar, India.


परंतु, गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं पर आधारित इस प्रथा को सरकारी प्रशासक अकेले नहीं रोक सकते हैं। हिंदू मान्यताएं, जैसे आम तौर पर करोड़ों भारतीय लोग समझते हैं, इस धारणा का समर्थन करती है कि कुछ समूहों का सामाजिक रूप से उच्च जातियों में पैदा होने वाले लोगों के मलमूत्र को साफ़ करने के लिए ही जन्म होता हैं।

और सबसे बड़ी समस्या यह है कि हज़ारों समकालीन हिंदू धार्मिक नेताओं में से केवल कुछ ही ने  गंभीर और सतत रूप से इस मुद्दे को उठाया है।

इससे पहले openGlobalRights पर, धार्मिक विशेषज्ञ अरविंद शर्मा ने यह बहस की थी कि हिंदू मान्यताएं अक्सर, मानव अधिकारों के साथ संगत होती हैं और हो सकती हैं। यदि एक प्राचीन शास्त्र जाति के बारे में सख्त विचारों को बढ़ावा देता है, तो दूसरे कम कठोर मायनों में इनकी व्याख्या करते हैं।

क्यों इस अपमानित और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कार्य के लिए इतने कम हिंदू धार्मिक नेता अभियान चला रहे हैं? क्यों मैनुअल स्केवेंजिंग का कार्य अभी भी केवल निम्नतम जातियों को सौंपा जाता है? यह बात सही है। फिर भी, असली प्रश्न यह है: क्यों इस अपमानित और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कार्य के लिए इतने कम हिंदू धार्मिक नेता अभियान चला रहे हैं? क्यों मैनुअल स्केवेंजिंग का कार्य अभी भी केवल निम्नतम जातियों को सौंपा जाता है? इस धर्म-आधारित विरोध के अभाव को हिंदू धर्म के रक्षक आसानी से समझा नहीं सकते हैं।

चन्द्र भान प्रसाद, एक अग्रणी दलित विद्वान, का कहना है कि हिन्दू आध्यात्मिक नेता जाति के विरूद्ध इस लिए नहीं बोलते हैं क्योंकि यह उनके धर्म का आधार है। उनका कहना है कि, “अगर आप जाति प्रथा को त्याग देंगे, तो हिन्दुत्व कमज़ोर पड़ जाएगा, क्योंकि यह धर्म उस पर आधारित है।”

नई दिल्ली में आधारित एक पर्यावरण-संबंधित गैर-सरकारी संगठन, चिन्तन, की भारती चतुर्वेदी ने इस बात से सहमति जताई। उनका कहना है कि हिन्दू “धार्मिक नेता जाति व्यवस्था से अपनी पवित्रता प्राप्त करते हैं” और जाति के विरूद्ध व्यापक रूप से लागू किसी भी आलोचना का समर्थन करना, “अपनी आम मान्यताओं के विरूद्ध जाना होगा।”

भारत के हिन्दू धार्मिक नेताओं के विपरीत, नवनिर्वाचित भारतीय प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी, ने एक बड़े पैमाने पर स्वच्छता को संबोधित करने का फैसला किया है। महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर, मोदी ने “मेरा स्वच्छ भारत” अभियान का आरंभ किया, और वादा किया कि वह अक्टूबर 2019 तक, भारत के प्रत्येक घर में चलते पानी वाले शौचालयों की स्थापना सुनिश्चित करेंगे। परंतु, उन्होंने जाति और मैनूअल स्केवेंजिंग को अपनी घोषणा से बाहर रखा है, यह समझते हुए कि उनकी पार्टी के कई राजनीतिक समर्थक हिंदुओं की ऊँची जातियों के सदस्य हैं और शायद उन्हें जाति-आधारित आलोचना पसंद नहीं आएगी। बल्कि, प्रधानमंत्री का संदेश एक स्वच्छ भारत बनाने के बारे में है, जिसमें हम सभी योगदान दे सकते हैं।  

मोदी की पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जान-बूझकर हिन्दू मतदाताओं का समर्थन मांगती है, परंतु उनका ज़ोर पूरे हिन्दू समाज की एकता पर है। इसके परिणामस्वरूप, पार्टी निम्नतम जाति, दलितों, के साथ चुनावी समर्थन जुटाने के लिए काम कर रही है। अतीत में, कई दलित कान्ग्रेस को वोट देते थे, परंतु कुछ वर्षों से वह अपना समर्थन उत्तर प्रदेश में दलित बहुजन समाज पार्टी के देने लग गए थे। हालांक 2014 के राष्ट्रीय चुनावों में, दलितों ने कई राज्यों में अक्सर बीजेपी के लिए वोट किया

गोरखपुर के बीजेपी के एक तेजस्वी नेता, श्री योगी आदित्यनाथ, इस बात से अस्वीकार करते हैं कि हिन्दू धर्म निम्न जातियों को बाहरी समझते हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि “सभी हिन्दू हैं” चाहे “वे शौचालय या मलमूत्र ही क्यों न साफ़ करते हों। निम्न जाति या उच्च जाति में कोई अंतर नहीं है — ये सभी हमारे धर्म का अंश हैं।” यह पार्टी की आधिकारिक पंक्ति है, एक कोशिश ताकि हिन्दू वोट बैंक न बँटे। आदित्यनाथ का कहना है कि हिन्दू धार्मिक नेताओं ने हमेशा ही दलितों और अन्य निम्न जातियों के लिए काम किया है, परंतु पत्रकार विरले ही इन प्रयासों के बारे में सूचना देते हैं। उन्होंने मुझसे कहा, “आप लोग इस बात को मानना नहीं चाहते, ” परंतु  बीजेपी “दलितों के लिए स्कूल चलाती है, जब वह अपने बच्चों की शादियाँ करना चाहते हैं, तो हम उनकी मदद करते हैं...सभी हिन्दू हैं। आप लोग पक्षपाती हैं।”

और तब भी, कड़वी सच्चाई यह है कि भारतीय समाज को बीमार करने बाली कई बातें जातिवाद से जन्म लेती हैं। यह लोगों के जन्म पर उन्हें दर्जा देती है, और यह मानती है कि जाति के अनुक्रम से बाहर या निम्न स्तर के लोग सबसे कठोर, निम्न, और अपमानजनक कार्य करने के लिए बने हैं।  

महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अभी भी मैनुअल स्केवेंजिंग प्रचलित है, जहाँ सरकार का कहना है कि वह शायद ही कभी होता है। कानून ऐसे लोगों की मानसिकता बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकती है जिन्हें सदियों से यह पालकर बड़ा किया गया है कि कुछ लोग जन्म पर हकदार होते हैं, और कुछ नहीं।  

उत्तरी भारत के पवित्र शहर, हरिद्वार, के एक धार्मिक संघ, जूना अखाड़ा के प्रधान, स्वामी अवधेशानाद गिरी, न मुझे बताया कि बदलाव धीमा है परंतु है ज़रूर, और यह कि “सभी हिन्दू आध्यात्मिक नेता छुआछूत के विरूद्ध उपदेश देते हैं।” और फिर भी, मैंने शायद ही कभी मीडिया की ऐसी रिपोर्ट पढ़ी होगी जिसमें यह कहा गया हो कि हिन्दू नेता मैनुअल स्केवेंजिंग का विरोध कर रहे हैं। यदि धार्मिक नेता सही में विरोध कर रहे हैं, तो वह उतना ज़ोर से नहीं कर रहे कि विश्वासियों का इन पर ध्यान जाए, विशेष रूप से भारत के विशाल गाँव के क्षेत्र में। उदाहरण के रूप में, हाल ही में सितम्बर 2014 में, पूर्व के एक राज्य, बिहार, में मंदिर के कर्मचारियों ने एक हिन्दू मंदिर को स्वच्छ और शुद्ध किया क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री और एक निम्न जाति के राजनेता, जीतन राम मांझी ने इस स्थान के दर्शन किए।

बीजेपी के पूर्व महासचिव, गोविन्द आचार्य का कहना है कि इस बड़े बीजेपी परिवार के एक सहबद्ध संगठन, विश्व हिन्दू परिषद, के धार्मिक नेताओं ने छुआछूत के विरूद्ध कई वर्षों से काम किया है और “इसे धरती पर सबसे बड़ा पाप मानते हैं।” और फिर भी, वीएचपी के बहुत कम ही नेता सार्वजनिक रूप से ज़ोर देकर मैनुअल स्केवेंजिंग के विरूद्ध बोलते हुए नज़र आए हैं।  

छूआछूत, मैनुअल स्केवेंजिंग और शुष्क शौचालयों का चलन शायद अब समाप्त होने वाला हो। शायद प्रधानमंत्री मोदी का स्वच्छ भारत अभियान इसमें मदद करेगा। भारत में मैनुअल स्केवेंजिंग करने वालों के लिए बदलाव दर्दनाक रूप से धीमा है, परंतु कई दलितों को अभी भी अपने से “बेहतर” उच्च-वर्ग के लोगों के मलमूत्र को बहुत कम उपकरणों, पैसों, या सुरक्षा के साथ साफ़ करना पड़ता है।

यदि मुख्य हिन्दू धार्मिक नेता एक ज़ोरदार और सक्रिय भूमिका निभाएं, तो बदलाव तेज़ी से हो सकता है।

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